बरहरवा में ठहरने के लिए एक धर्मशाला (मेन रोड पर) तथा एक लॉज (सब्जीमण्डी रोड पर) है। (लॉज तो दो हैं, पर एक ने लॉजिंग बन्द कर दिया है।) यहाँ रहते हुए आप आस-पास के निम्न दर्शनीय स्थलों का भ्रमण कर सकते हैं:-

                ऐतिहासिक नगरीः राजमहलः बरहरवा से छब्बीस किलोमीटर उत्तर-पूर्व। रेल से वाया तीनपहाड़ तथा रोड से वाया उधवा जुड़ा। गंगातट। माघी पूर्णिमा में गंगातट पर मेला। मुगलकाल में दो बार बंगाल की राजधानी रहने का गौरव हासिल। बंगाल के तत्कालीन गवर्नर मानसिंह के समय निर्मित ‘संगी दलान’; अंग्रेजों द्वारा निर्मित ‘नीलकोठी’; ‘बारहद्वारी’ के खण्डहर। सात किलोमीटर दूर मंगलहाट में मुगलकालीन भव्य ‘जामी मस्जिद’। वहाँ से भी पाँच किलोमीटर दूर ‘कन्हाई नाट्यशाला’ (बोलचाल में ‘कन्हैया स्थान’), जहाँ अपनी रूठी राधा को मनाने के लिए कृष्ण ने नृत्य किया था। बाद में चैतन्य महाप्रभु ने यहाँ प्रवास किया। वर्तमान में ‘इस्कॉन’ के अधीन। (राजमहल में ही (बादशाह आलमगीर के पोते, बंगाल के गवर्नर) अज़िमुस्सान तथा अँग्रेजों के बीच 13 नवम्बर 1698 को 16,000 रूपये में करार हुआ था, जिसके तहत गोविन्दपुर, सुतानाति तथा कोलिकाता गाँव अँग्रेजों को सौंप दिये गये थे- यहीं से अँग्रेजों के पैर भारत में जमे!)

                 मोती झरना, महाराजपुरः बरहरवा से आप पैसेन्जर ट्रेन से जा सकते हैं। महाराजपुर स्टेशन बरहरवा से कोई चालीस किलोमीटर (साहेबगंज की ओर) दूर है। वहाँ उतरकर मैदानी/पहाड़ी रास्तेपर प्रायः तीन किलोमीटर ‘ट्रेकिंग’ करते हुए ‘मोती झरना’ पहुँचिये। प्रायः सौ फीट की ऊँचाई से गिरते जलप्रपात का आनन्द लीजिये। वर्तमान में पर्यटन विभाग द्वारा जलक्रीड़ा के लिए स्वीमिंग टैंक का निर्माण। विशेष भीड़ सावन के अन्तिम सोमवारी को, क्योंकि यहाँ एक गुफा में शिवजी भी स्थापित हैं।

                शिवगादी, बरहेटः बरहरवा से बीस किलोमीटर पश्चिम में बरहेट। राजमहल की पहाडि़यों के ऊपर से मनोरम बस यात्रा। बरहेट बाजार से सात किलोमीटर का जंगली/पहाड़ी सफर। बीच में गुमानी नदी। सफर के अन्त में एक आश्चर्यजनक पहाड़ी गुफा के अन्दर विराजमान हैं शिव- ‘गजेश्वर’ नाम से। गुफा के बाहर प्राकृतिक झरना। सावन में भारी मेला। पर्यटन विभाग की ओर से सौन्दर्यीकरण। (बरहेट के पास ही ‘सन्थाल हूल’ के नायक सिदो-कान्हू भाईयों की जन्मस्थली भोगनाडीह है।)

                फरक्का बराजः बरहरवा से बीस किलोमीटर दूर। ट्रेन से पहुँचिये- ट्रेकर भी चलते हैं। गंगा नदी पर बने प्रायः दो किलोमीटर लम्बे बराज पर चलने का आनन्द लीजिये। दोनों तरफ गंगा की अगाध जलराशि- बेशक बरसात में। बाकी समय पानी की कमी से रेत के मैदान और टीले नजर आने लगते हैं।

                 राजबाड़ी, कोटालपोखरः पाकुड़ की ओर मात्र बीस मिनट का रेल सफर पूरा कर कोटालपोखर स्टेशन पर उतरिये। यह सड़क मार्ग से भी जुड़ा है। जमीन्दार इस्माइल चैधरी का आलीशान महल देखिये। सामने मैदान में सुन्दर नक्काशियों से भरा छोटा-सा मस्जिद भी देखने लायक।

                पतौड़ा झील, उधवाः राजमहल के रास्ते में पन्द्रह किलोमीटर की दूरी पर मुख्य सड़क से किलोमीटर भर दूर एक झील। पक्षी अभयारण्य। मगर कुछ कारणों से जाड़े में ‘प्रवासी’ पक्षियों का आगमन नहीं के बराबर। ‘बोटिंग’ की सुविधा दी तो गयी है, पर शायद ही कभी इसका उपयोग होता हो। (उधवा के बीच से गुजरते ‘उधवा नाला’ (गंगाजी की एक धार) के किनारे ही मीर कासिम तथा अँग्रेजों के बीच निर्णायक लड़ाई हुई थी, जिसे जीतकर अंग्रेज कोलकाता से दिल्ली की ओर बढ़े थे!)